Monday, September 27, 2010


किया इरादा तुझे भुलाने का ...


किया इरादा बारहा तुझे भुलाने का
मिला न उज्र ही कोई मगर ठिकाने का
ये कैसी अजनबी दस्तक थी कैसी आहट थी
तेरे सिवा था किसे हक़ मुझे जगाने का
ये आंख है कि नहीं देखा कुछ सिवा तेरे
ये दिल अजब है कि ग़म है इसे ज़माने का
वो देख लो वो समंदर ख़ुश्क होने लगा
जिसे था दावा मेरी प्यास को बुझाने का
ज़मीं पे किस लिए ज़ंजीर हो गये साये
मुझे पता है मगर मैं नहीं बताने का

- शहरयार