Friday, January 14, 2011


ताली तो दोनो हाथों से बजेगी !


रजाई में दुबके बैठे मुसद्दी भाई अखबार पर नजर गड़ाए लगातार सिर हिलाए जा रहे थे. मैं समझ गया कि भाई किसी खबर को पढ़ कर व्याकुल हुए जा रहे हैं. मैंने कहा, भाई क्या बात है? अमन चैन तो है. कहने लगे, अमां तुम भी सोचो उस मुल्क की हालत जहां अदालत को राजधानी की गंदगी साफ करने के लिए कहना पड़े. मुझे नहीं पता कि दिल्ली नगर निगम को कैसा फील हो रहा है, पर यार यकीन मानो मैं तो बहुत शर्मिन्दा हूं. भाई खिसक कर नीचे चली आ रही अपनी ऐनक को लगातार उपर किये जा रहे थे. मैं समझ गया भाई ने मसले को दिल से लगा लिया है. मैंने कहा, कुछ दूसरी बात करें? किसी पॉजिटिव चीज पर डिस्कशन हो तो अच्छा लगता है. मैं बात खत्म करता, उसके पहले ही वो 'हल्ला बोलÓ वाली अपनी खास अदा में आ गये. सब जानते हैं कि भाई का ब्लड प्रेशर जब हाई होता है तो वे अपनी बातों के बीच में अंग्रेजी ठोंकने लगते हैं. डोंट टेल मी! दरअसल ये तुम्हारी अकेले की नहीं, ये इस पूरे सो कॉल्ड नेक्स्ट जेन की प्रॉब्लम है. अरे भइया, काहे का पाजिटिव और काहे का निगेटिव. बरखुरदार, निगेटिविटी में भी पॉजिटिविटी की जिन्स मिलती है. उसे देखने वाली निगाहें होनी चाहिए.अगरचे मैं देश की राजधानी के गंदे रहने को लेकर फिक्र करूं तो एम आई रॉन्ग? जानते हो प्रॉब्लम क्या है? दरअसल हमने गंदगी को अपनी जिंदगी के साथ इतना आत्मसात कर लिया है अब वो समस्या लगती ही नहीं. कूड़ा करकट है तो है. नो प्रॉब्लम. नाबदान बह रहा है तो बहे. एंक्रोचमेंट है तो है. भाई लगातार बोले चले जा रहे थे. अब तुम्हीं बताओ मेरे दोस्त कि क्या इन खामियों को दुरुस्त करने की बात में कहीं निगेटिविटी नजर आ रही है? जानते हो आजकल लोग गूंगे हो गये हैं. समस्याओं पर बोलना नहीं चाहते. हकीकत में यही निगेटिविटी है. कहो तो बोलेंगे कि सब सिस्टम की वजह से है. मेरी अपनी पर्सनल थिंकिंग है कि यह सोचना ही नकारात्मकता है. लेकिन इसका यह कतई मतलब नहीं है कि मैं व्यवस्था को चलाने वाले तंत्र को कोई क्लीन चिट दे रहा हूं. रिमाइंडर दर रिमाइंडर के बाद काम करने वाले अपने इंडियन सिस्टम की अपनी एक खास स्टाइल है. उसका अपना एक अलग कैरेक्टर है. 'जब जब धर्म की हानि होगी तब तब मैं अवतार लूंगाÓ की तरह कोर्ट की फटकार पर दो चार दिन तो सब ठीक चलता है लेकिन फिर वही ढाक के तीन पात. ये कहते हुए मुसद्दी भाई थोड़ा रुके तो मैंने भी जड़ दी. भाई सारी सिचुएशन के लिए क्या सिस्टम ही दोषी है? नो माई डियर फ्रेंड, नो. यही तो मेरा कहना है कि हालात के लिए तंत्र अकेला जिम्मेदार नहीं है. ये जो पब्लिक है ना, वो तमाम मसलों की पोषक है. अगर कहीं गंदगी है तो सवाल है कि उसे वहां कौन फेंक रहा है? नो पार्किंग जोन में गाड़ी खड़ी है तो किसकी है? कोई क्राइम इंसीडेंट होने पर लोग कन्नी काट कर निकल लेते हैं. रोड एक्सीडेंट में मरने वाले पर हमें अफसोस कम और उससे लगी जाम की वजह से ऑफिस पहुंचने में हो रही देर पर खिजलाहट ज्यादा होता है. सर्द रात में हम किसी की खुद से मदद करने के बजाय अलाव न सुलगाये जाने के लिए नगर निगम को कोसते हैं. मेरे दोस्त, ये सब हमारी थिंकिंग के निगेटिव एलीमेंट्स हैं.भाई के उपदेशात्मक भाषण को सुन बोर होते हुए मैंने पूछ लिया, अच्छा तो हालात को ठीक करने का आप ही कोई फार्मूला बताइये. लम्बी सांस लेकर भाई ने ऐनक के अंदर से मुझे घूरते हुए देखा और कहा, हर ताले की कुंजी होती है. इसकी भी है. हम सीविक्स पढ़ते तो हैं पर हमारे अदंर सिविक सेंस नहीं है? अब सामने वाले बाबू की मम्मी को ही लो. ग्रेजुएट हैं. बालकनी से ही एक पसेरी मटर का छिलका सड़क पर फेंक देंगी. इसके पीछे उनकी सोच होती है कि पूरी कॉलोनी को खबर रहे कि इस महंगाई में भी उनके यहां मटर चूड़ा खाया जा रहा है. अरे हां, प्याज का छिलका तो वे अपने गेट पर कुछ इस तरह रखती हैं कि चाहे जितनी हवा चलवा लो वो टस से मस नहीं होंगे. बिल्कुल किसी वफदार कुत्ते की तरह. अपना स्टेटस मेंटेन रखने के लिए पूरी कॉलोनी में गंदगी फैलाने से उन्हें गुरेज नहीं है. भाई कुछ झेंपते हुए बोले, जानते हो मैं रोज यह सोच के बालकनी में पहले से खड़ा रहता हूं कि आज उसे टोकूंगा जरूर. पर क्या बताऊं, मि_ू की अम्मा ने इसका 'कुछ औरÓ ही मतलब निकाल लिया. दिल के अरमा, यूं ही दबे रह गये. भाई को इमोशनल होते देख मैंने कहा, अरे हां! फार्मूला बताइये ना. धीर गंभीर आवाज में बाले, यार इतनी देर से क्या बता रहा था. यही ना, कि किसी को दोष देने से पहले अच्छा हो कि हम सिविक सेंस सीखें और उसे अच्छे से बरतें. जिस दिन हम यह समझ लेंगे कि ताली दोनों हाथों से ही बजती है, उस दिन इस पूरी सोसायटी का भला हो जाएगा. अपने में खोये भाई का चेहरा सुर्ख हुआ जा रहा था.