Saturday, March 20, 2010


बहन के

नाम एक

भाई की पाती
बहन के नाम लिखा गया यह एक भाई का खत है. मजमून पढ़ा तो समझ में आया कि खालिस इश्क के मायने क्या है. एक एक जुमला मोहब्बत की चाशनी में लपेटा हुआ. पढऩे से समझ में आया कि रिश्तों की कोई जात नहीं होती. इसमें कोई छोटा या बड़ा नहीं होता. अगर कुछ होता है तो वह है सिर्फ अदब और आदाब. इस लेटर को हूबहू पोस्ट कर रहा हूं. अच्छा लगे तो कमेंट जरूर करिएगा....

आदरणीय सना बाजी
सलाम

बज्जो कैसा अजीब सा लगता है कि आज आप की निकाह क्या हो रही है कि आप मेरी बज्जो से बाजी बन बैठीं. यकीन ही नहीं हो रहा है कि हमारी बज्जो इतनी बड़ी हो गयी है कि वह निकाह कूबूल कर रुखसती को तैयार हो जाए. मेरे लिए यह एक अजीब सी खुशी और गम का पल है. खुशी इस लिए की आज हमारी बहना निकाह लायक हो गयी और गम इस लिए की रुखसती के बाद वह एक ऐसे शहर में रहेगी जो हमारे चक्रमण के रूट में नहीं आता. अब तक हमारे नक्शे में राजस्थान में सिर्फ ख्वाजा गरीब नवाज के शहर अजमेर का नाम ही दर्ज था, पर अब कहना पड़ेगा की हमारे तालुकात जोधपुर से भी हैं. बहरहाल बज्जो मुझे आज अपने बचपन के एक-एक लम्हे की याद आ रही है. कैसे हम लोग ईद-बकरीद, होली-दीवाली, रजब की दसवीं तारीख और गणपति के दिन एक ही दस्तरख्वान पर खाना खाते थे. रमजान के पाक महीने में अफ्तार करते थे. इस अफ्तारी का हमें अर्से से इंतजार रहता था. याद है उस दिन हम लोग रोजा भी रखते थे. बज्जो मुझे वह सब आज भी याद है कि पापा की डे ड्यूटी के वक्त शनिवार के दिन मैं कैसे आपके और भाई के साथ दिन गुजारता था. लक्ष्मी पार्क बिङ्क्षल्डग के पीछे पहाड़ी पर खेलने जाना, साइकिल चलाना, क्रिकेट खेलना सब कल की बात लगती है. आप लोगों की और मेरी साइकिल की खरीद के वक्त हमने कैसे इडली खायी थी. आपको शायद याद होगा कि सेन्ट एलॉयशिस में हम कैसे साथ में स्कूल जाते थे. इसके बाद जॉन ट्वेंटी थर्ड में मेरे और भाई के एडमीशन के बाद पापा और फूफाजी ने कितनी तरकीबें लगाकर आप का एडमीशन कराया था. सिस्टर रेबेका के सामने आपका किया ड्रामा पापा को आज भी याद है. हो सकता है किसी के लिए यह सब बीता हुआ कल लगे पर हमें तो आज तक अपने साथ लगातार चल रहा एक ऐसा सिनेमा लगता है जिसका कोई इन्टरवेल या दी एण्ड नहीं होता. सिनेमा के नाम पर वसई जा कर जुरासिक पार्क देखना हम कभी न भूल सके . बज्जो कैसे बताऊं कि हमें बनारस लौट आये एक अर्सा बीत चुका है पर मेरे दिल में आपकी और मोहतरम भाई की पैठ आज भी वैसी ही गहरी बनी हुई है. किसी बात पर भाई का गुस्साना फिर बाद में आपका उनको समझाना आज जब भी याद करता हूं तो मेरे दिल में गर्व का भाव आता है कि सना हसनैन मेरी आपा है. आपको शायद यकीन न हो की मेरी बातें सुन-सुन कर सृष्टिï भी आपके प्रति एक अदब का जज्बा रखती है. मेरा मानना है कि यह सब मौला का करम है कि हम सब ने एक ऐसी परवरिश पायी जहां नफरत के लिए कोई जगह नहीं है. मिर्जा और गोकर्ण परिवार के बीच रिश्तों की जो डोर बंधी है वह सिर्फ और सिर्फ मोहब्बत के ताने से बुनी हुई है. हमारे रिश्तों का आधार वो संस्कार है जो हमें अपने बुजुर्गों से मिले. मंत्रों के साथ हमारा दोआ पढऩा, जनेऊ के साथ ताबीज पहनना, तस्बीह फेरना और नमाज के बाद गणपति बप्पा के जुलूस में शिरकत करना हमें लाखों-करोड़ों दुनियावी लोगों की भीड़ से अलग करता है. हो सकता है की हमारे विचारों को सुन कर लोग हमें मजहबी कहने की चूक कर बैठें, पर यकीन मानो हमारी यह अकीदत रूहानियत से ताल्लुकात रखती है. और यह हमें ता जिन्दगी गुमराह होने से रोकेगी.बज्जो मौला के प्रति अकीदत का यह भाव हमें सी-201 से मिला जिसे हमारे पीर साहब ने परवान चढ़ाया. तुम्हें मैं कैसे यह बताऊं की आज दीवानगी के जिस आलम में मैं और मेरा परिवार जी रहा है (जिस पर हमें गुरुर है) वह सब पूज्य दद्दा, फूफाजी और बुआजी की ही देन है. बहरहाल बज्जो आज जब आप निकाह कुबूल फरमाने जा रही हैं तो आपसे यह गुजारिश है कि आप दूल्हे भाई मुस्तफा जैदी साहब को हम सब के बारे में बताइएगा. आप उन्हें यह बताइएगा की मेरे और आप के परिवार के दरम्यान यह जो रिश्ता है वह मौला-ए-कायनात की तरफ से हमें दिया गया एक अजीम तोहफा है, जिस पर हम रश्क करते हैं. उन्हें वो वाकयात बताइएगा जिसने इस रिश्ते को परवान चढ़ाया. आप कोशिश करीयेगा की वर्दी वाले हमारे दूल्हे भाई हमारे ही रंग में इतने ढल जाएं की हम जब भी उनसे मिलें तो इस बात का अहसास तक न हो की हम पहले कभी मिले ही नहीं. वैसे मुझे इस बात का इलहाम है कि हमारे मुस्तफा भाई भी हम जैसे ही होंगे तभी उन्होंने हमारी आपा को पसन्द किया. अब आपसे एक और गुजारिश है कि आप जल्द से जल्द बनारस आने का प्रोग्राम बनाएं. हमारे गरीब खाने का हर मेम्बर आपके इस्तेइकबाल को बेताब है. अब जरा अपने प्यारे मोहम्मद भाई को भी पूछ लूं, वरना वह जब भी मुझसे मिलेंगे तो यही कहेंगे, अबे बज्जो के चमचे मुझे सलाम नहीं ठोकेंगा. पूज्य दद्दा, फूफाजी, बुआजी को सादर चरण स्पर्श और मेरे प्यारे भाईजान को आदाब. निकाह में शामिल न हो पाने का मुझे हमेशा मलाल रहेगा. यकीन है कि मेरी गैरहाजिरी को आप माफ करेंगी और एग्जाम के लिए मेरी हौसला आफजाई करने के वास्ते खत जरूर लिखेंगी. याद रहे की 27 दिसम्बर को मेरी बर्थ डे है. अन्त में अपनी बज्जो को एक बार फिर अदब से झुककर सलाम. मालिक हमारे परिवार की मोहब्बत को इसी तरह जन्म-जन्मांतर तक बरकरार रखे. इसी दोआ के साथ खुदा हाफिज.
आपका अनुज
चिन्मय गोकर्ण

8 comments:

  1. चिन्मय जी ,
    आप का ख़त तो राष्ट्रीय एकता की मिसाल आप है ,
    पोस्ट हक़ीक़त में जज़्बाती कर गई

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  2. bhai bahen ke pavitra rishte avm jajbaaton ko darshati ek dil ko chhoone wala aalekh bahut hi badhiya dhanyavaad.

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  3. Behtareen jazbaaat...Dono pariwaron ka pyar aisehee barqaraar rahe..aameen!

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  4. Behad sundar khat hai yah...chashme-bad-door...dono pariwaron me sada pyar rahe!

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  5. इश्क कोई समस्या नहीं की हल ढूंढा जाए,
    मंजिल की वो करें तलाश जिन्हें सफ़र में मजा ना आये.........

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  6. are ye khat to mera padha hua hai. Mujhe achchi tarah yaad hai ki jab main banaras me tha to aapne ye khat padhkar hume sunaya tha. Vaise blog par post karke aapne achha kiya hai. Is khat ke majmoon me jo sandesh hai use duniya ke har kone tak pahunchana zaruri hai. Tabhi dharm jati vagairah ke bandhan se logon ki soch ko aazad karne ki zarurat hai. Yeh khat iss baat ki tasdeek karta hai ki mohabbat ke jazbaat bas pak hone chahiye. Dharm jati koi maayne nahi rakhti. Bhai- baha ki iss mohabbat ko salam.

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  7. आप सभी का शुक्रिया, नवाजिश, करम, मेहरबां.

    इतने सारे कमेंट्स पाकर लगा कि जज्बातों के कद्रदां अभी बाकी हैं. एक बार पुन: धन्यवाद.

    विश्वनाथ गोकर्ण

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