Tuesday, December 21, 2010



अवधूता युगन युगन

हम योगी...



घर की दहलीज पर जीर्णशीर्ण साइकिल को झाड़ते पोंछते मुसद्दी भाई बड़े तन्मय भाव से निर्गुन गा रहे थे. अवधूता युगन युगन हम योगी, आवै ना जाये मिटै ना कबहूं, सबद अनाहत भोगी. वे अपने में इतने मगन थे कि उन्हें मेरे आने की आहट तक नहीं लगी. मैंने कहा, भाई क्या बात है? बहुत रूहानी हुए जा रहे हैं? अचानक उनके हाथ थम गये. ऐनक नाक पर चढ़ायी. फिर एक लम्बी सांस ली. बोले, इस फानी दुनिया में दिल लगाने के लिए आखिर रखा क्या है मेरे भाई? मैं समझ गया था, कहीं गहरी चोट खा बैठे हैं. मैंने कहा, भाई आप ठीक कह रहे हैं पर यह फानी दुनिया भी है बड़ी रंगीन. किसिम किसिम के लोग, किसिम किसिम की बातें. यू शूड एंजॉय ऑल दीस थिंग्स. सोच में स्प्रीचुएलिटी होना अच्छी बात है पर दुनियावी जिंदगी में, वह भी आज के दौर में उस पर अमल करना बड़ा मुश्किल होता है भाई. इतना सुनते ही वो थोड़ा जज्बाती हो गये. कहा, दोस्त दौर को आज और कल के खांचे में बांट कर दुनिया को अपने चश्मे से देखने का तुम लोगों का यह तरीका बड़ा अच्छा है. चित भी मेरी पट भी मेरी. मैंने कहा, छोड़ो भाई इस पर फिर कभी और बहस होगी. पर साठे में पाठा वाली ये बात मुझे कुछ हजम नहीं हो रही है. मैंने बाबा आदम के जमाने की साइकिल और उनकी अपनी काया की तरफ इशारा किया. भाई अपनी स्टाइल में मुस्कुराए. कहने लगे, बच्चा तुम्हारी साइंस चाहे जितनी तरक्की कर ले लौटना हमें पुराने वक्त में ही है.मैं भी ठहरा एक कुतर्की. बोला भाई, आप हमेशा कुछ अलग ही राग गाते हो. तमाम आटो मोबाइल कम्पनीज हर रोज एक से एक नये मॉडल लॉन्च कर रही है. उसमें से कोई एक सेलेक्ट करने के बजाय आप साइकिल पोछ रहे हैं. चुपचाप मेरी बातों को सुन रहे मुसद्दी भाई अचानक तुनक गये. गाड़ी तो मैं आज ले लूं पर मुआ पेट्रोल कहां से लाऊंगा. दोस्त चीजें खरीदना आसान है पर उसका और उसके हिसाब से खुद को मेंटेन रखना सबके बस में नहीं है. रही बात पेट्रोल की, ये भी कुछ अजीब शै है. पहले लोग 'तेल देखो, तेल की धार देखोÓ को मुहावरे में सुनते थे. लेकिन अब ये चंद जुमले एक कॉमन मैन की जिंदगी में कुछ इस तरह से रच बस गये हैं कि लोग इसे फ्रेज में इस्तेमाल करना ही भूल गये. तुम्हें बतायें बरखुरदार कि ये जो पेट्रोल है ना, वो गरीब की बेटी की तरह हर दिन बढ़ती जाती है. उसके बढऩे की गति भी कुछ इस कदर है कि लगता है कुछ दिनों बाद लोग तस्वीरों में ही डीजल और पेट्रोल की धार देख सकेंगे. मुसद्दी भाई आदत के मुताबिक बोले चले जा रहे थे. तुमने गाड़ी की बात की है ना. चलो मैं तुम्हे एक किस्सा सुनाता हूं. अभी कल ही पेट्रोल पम्प पर एक नौजवान एक ब्रान्ड न्यू बाइक पर सवार हो कर कुछ इस तरह पहुंचा कि सबकी निगाहें उसे ही घूरने लगी. मैंने भी भरपूर निगाह से उसे देखा. तभी किसी ने उससे पूछ लिया, अमां कितने में पड़ी यह ...रिश्मा? नौजवान ने ऐंठ कर जवाब दिया 80 हजार की. एसेसिरीज अलग से. इसके साथ ही काना फंूसी होने लगी. अरे यार, दस बीस और मिला कर लखटकिया ले लेते. जितने लोग, उतने तरह की बात. अब तुम्हें क्या बताएं मेरे भाई उस नौजवान ने अपनी ...रिश्मा की सबके बीच में नाक कटवा दी. जानते हो उस 80 हजारा गाड़ी में उसने पेट्रोल कितने का भरवाया? सिर्फ 20 रूपए का! अब तुम ही बताओ कि इससे क्या साबित होता है, यही ना गाड़ी तो आप एक बार किसी तरह खरीद लोगे लेकिन फ्यूल को अपने बजट के समीकरण में फिट करना हर किसी के बस में नहीं है.देर से भाई की बातें सुनता हुआ मैं भी उकता रहा था. बोला, प्राइज हाइक के साथ इनकम भी तो बढ़ी है? भाई फट पड़े, क्या बकवास कर रहे हो. ले आओ कैलकुलेटर और कर लो हिसाब किताब. पिछले दस सालों में जिन्सों के दाम जितने बढ़े उनकी तुलना आमदनी के साथ कर लो फिर बात करना. तमाम चीजों के रेट घटने बढऩे का असर किसी पर पड़ता है तो किसी पर नहीं. लेकिन पेट्रोल डीजल के दाम बढ़ते ही अच्छे अच्छों का कद घटने लगता है. बेटा मैंने भी थोड़ा बहुत कौटिल्य का अर्थशास्त्र पढ़ा है, अगर गलत कह रहा हूं तो बताओ? चलो अब इस साइकिल के दिन बहुरने का राज तुम्हें बता ही देते हैं. मैंने सोचा है कल से मिट्ठू की अम्मा को पीछे बैठा कर टहलाया घुमाया करूंगा. कटीली मुस्कान फेंक कर बोले, जानते हो इससे एक तो यह होगा कि थोड़ी सेविंग हो जाएगी तो दूसरे फ्लैश बैक से बीते हुए दिन याद कर हम भी थोड़ा रूमानी हो जाएंगे.मैंने देखा, भाई कहीं दूर हसीन ख्वाबों में खोये हुए गा रहे थे ... सभी ठौर जमात हमरी, सब ही ठौर पर मेला. हम सब माय, सब है हम माय, हम है बहुरी अकेला. हम ही सिद्ध, समाधि हम ही हम मौनी हम बोले. रूप सरूप अरूप दिखा के हम ही हम तो खेले. कहे कबीर सुनो भाई साधो नाही न कोई इच्छा, अपनी मढ़ी में आप मैं डोलूं, खेलूं सहज स्वेच्छा.


सचिन, तुझे सलाम !


उसके चेहरे की मासूमियत देख कोई नहीं कह सकता कि ये बंदा तीस पार की उम्र में चल रहा है. हिन्दी हो या इंग्लिश, लैंग्वेज पर उसकी जबर्दस्त कमांड को देख शायद आप समझेंगे कि वो किसी यूनिवर्सिटी का प्रोफेसर है पर बहुत कम लोगों को पता है कि वो ग्रेजुएट भी नहीं है. उसकी स्टाइलिश वियरिंग्स या बॉडी लैंग्वेज देख कोई अंदाजा नहीं लगा सकता कि सामने वाला एक जमाने में किसी मिडिल क्लास फैमिली को बिलॉन्ग करता था. फैमिली कहने के साथ याद आया अपनी वाइफ के साथ उसकी केमेस्ट्री इतनी बेहतरीन है कि आप को एहसास ही नहीं होगा कि वो अपनी बेटर हाफ से तकरीबन पांच साल छोटे हैं. दोनों का मैच्योर बिहेवियर इस बात की तस्दीक करता है कि वे अपनी सोशल रिस्पॉन्सबिलिटीज को लेकर कितने कमिटेड हैं. ये सब उनकी जिदंगी का एक हिस्सा है. जहां फीलिंग्स हैं, सेंटिमेंट्स हैं और है हम्बलनेस.उनकी लाइफ का एक अदर साइड है जिसमें सिर्फ और सिर्फ डेटाज हैं. मिनट दर मिनट का हिसाब है. घंटे से बढ़ते हुए दिन में, फिर साल में और फिर डिकेड््स में तब्दील होते इन डेटाज को रिकॉर्ड बुक समेट नहीं पा रहे हैं. आज उस शख्स के बारे में इतना सब कुछ लिखे जाने की वजह भी ये डेटाज ही हैं. उनका कोई हिसाब किताब दस बीस में नहीं होता, सैकड़े में होता है. इस सैकड़े का लेखा जोखा भी वो अब हाफ सेंचुरीज में करने लगे हैं. उम्र के एक खास पड़ाव पर आने के बाद जहां लोग टेन टू फाइव की ड्यूटी करना पसंद करते हों 11 लोगों से ये आदमी मैदान पर कई कई घंटे अकेले जूझता रहता है. जाने कितने हजार शॉर्ट पिच, बीमर और बाउंसर जैसे मिसाइल्स झेल चुके इस बंदे का जिस्म भी अब लगता है कि अग्नि पिंड बन चुका है. उसकी इन्हीं सब खासियतों को देख लोग उन्हें भगवान कहते हैं पर विनम्रता की यह प्रतिमूर्ति नीली छतरी वाले का शुक्राना अदा करता नहीं अघाता. क्या हमें बताने की जरूरत है कि वो है कौन? ऐ सचिन तेन्दुलकर सेंचुरीज की हाफ सेंचुरी पर यह धरा तुम्हे झुक कर सलाम करती है.