Friday, February 12, 2010

चश्मे मस्ते, अजबे ...


महीने भर से डाट कर पहनी जर्सी को झाड़ते हुए दीक्षित जी कुछ गुनगुना रहे थे. मैंने कान लगा कर सुनने की कोशिश की तो ऐनक को नाक पर उपर सरकाते हुए पूछ बैठे. क्यों बरखुरदार आयी बात कुछ समझ में? नहीं ना? अमां ये इश्क है ही ऐसी चीज जो किसी के पल्ले पड़ती वड़ती नहीं है. बस यूं समझो ठग्गू के लड्डू की तरह. जो खाये वो पछताये और जो ना खाये वो पछताये. मैं भी सोचने लगा यार, ये बात तो कर रहे मोहब्बत की फिर इसमें लड्डू क्या घालमेल. चलो होगा कुछ. ये जिस जमाने के हैं उस वक्त की मोहब्बत में आज जैसा लावण्य नहीं हुआ करता होगा. मैं सोचा जा रहा था और वो थे कि खालिस इंग्लिश में भारी भरकम डायलॉग्स दाग रहे थे. यू नो दिस इस अ सूफी कलाम. 'चश्मे मस्ते, अजबे गुल-ए- तराशा कर दीÓ. इस परशियन कलाम में आशिक इश्क में इस कदर डूबा हुआ है कि उसे यह जहान मस्ती का चश्मा यानि झरना नजर आता है. यार, ये आज के लोग समझते हैं कि अफेक्शन कोई मॉडर्न एरा की चीज है. अब मैं इन्हें कैसे समझाऊं कि ये लव का जो डेफिनेशन आज तुम दे रहे हो वो हकीकत नहीं है.देर तक भाषण सुनते हुए मैं भी बोर हो चला था. इंटरप्ट कर बैठा. सर, दिक्कत क्या है? फिर क्या था, सारी भड़ास बलबला कर बाहर आ गयी. मेरे भाई, मेरा इकलौता बेटा है. नाम मैंने उसका सागर इस लिए धरा कि वो दरियादिल बने. पर जानते हो वो अपना दिल ही बांटता फिर रहा है. आज वो इंस्टीट्यूट से लौटते हुए एक नयी कन्या के साथ आया. पूछ लिया तो बताया कि वो उसकी गर्ल फ्रेंड है इस बार का वेलेंटाइन उसने इसके साथ फिक्स कर रखा है. उस कन्या को मैंने नयी इस लिए कहा क्योंकि वो इस साल की उसकी सातवीं गर्ल फ्रेंड है. यार अब तुम्ही बताओ कि मोहब्बत के देवता, क्या नाम है उनका, हां वो संत वेलेंटाइन को पूजने का यही तरीका है? किसी अनवांटेड काइंड की तरह हर दो महीने बाद दोस्त बदल दो? जब तक साथ है उसे गिफ्ट दो, प्रपोज करो, इधर उधर टहला घूमा दो और उसके बाद कुट्टी कर लो. फिर उसे जिंदगी से ऐसा बेदखल करो कि उससे जुड़ी कोई याद बाकी न रह जाए और फिर ले आओ दूसरी या दूसरा फ्रेंड. नहीं, नहीं ये अफेक्शन नहीं है. यह तो 'यूज एंड था्रेÓ है. दीक्षित जब बोलते हैं तो किसी दूसरे की सुनते नहीं हैं.हां, ये सब होगा अंग्रेजों के यहां. हम उनके जज्बात की तारीफ करते हैं लेकिन हम तो इस मोहब्बत को अपनी चाशनी में लपेट कर महसूस करने के आदी हैं. कैसे कहूं कि ये इश्क खालिस रूहानी चीज है. वो उस ऑल माइटी का दिया सबसे नायाब तोहफा है जो इस दुनिया को चलाता है. इसमें जिस्म कोई वजूद नहीं होता. यह तो दो रूहों की अंडर स्टैंडिंग है. नजीर देखना हो तो हजरत निजामुद्दीन औलिया और हजरत अमीर खुसरो की बेपनाह मोहब्बत को देखो. एकदम आसमान से उतरी हुई. एक रवानगी थी, अदब था और यकीनन था जिंदगी भर साथ निभाने का वादा.और अब हम कहां आ पहुंचे हैं. साल भर में सातवीं फ्रेंड. अमां, ये मुआ फरवरी का महीना तो पहले भी आता था? यह है भी कुछ अजीब सा. जाती हुई ठंड और आता हुआ फागुन. मन में मीठी सी टीस लिए इधर उधर डोलता दिल जवां होने की कुछ ज्यादा ही फीलिंग्स देता है. दूसरों की छोड़ो गौर करो तो अपनी ही बॉडी लैंग्वेज बदली बदली सी दिखायी देने लगती है. वो क्या कहते हो तुम लोग 'एक्स फैक्टरÓ और 'केमेस्ट्रीÓ जैसे सिर चढ़ कर बोलने लगती है. अचानक कनखी दबा कर उनका यह कहना गुदगुदा गया, देखो पंडित जी, ऐसा नहीं कि यह सब मुझे अच्छा नहीं लगता. हमें भी यह सब पसंद है. हम तो आज भी अपनी स्लिम ट्रिम को घुमाना चाहते हैं लेकिन क्या कहें यह हमारी कृशकाया गऊ जब देखो तब बीमार ही रहती है. घूमने का प्रपोजल रखो तो कह देगी भक! सामने खड़े ये कहते हुए दीक्षित जी खुद ऐसे लजा रहे थे जैसे छुई मुई हों. दीक्षित जी बोले चले जा रहे थे और मैं चार्वाक को फेल करती उनकी फिलॉसफी में गहरे और गहरे डूबता चला जा रहा था. कॉन्शस को सब कॉन्शस समझाने में लगा था, देखो दरअसल लव अफेक्शन के प्रति यह सोच किसी अकेले दीक्षित जी की नहीं है. यह फिलॉस्फी एक पूरी जेनरेशन की है. वो आज के यूथ से अलहदा सोच नहीं रखती. उनके मन में भी प्रेम का वही भाव है. वह परेशान है इस बदलते भाव के बेअंदाज रवैये से. वह प्रेम को किसी डे या वीक में बांधे जाने से दुखी है. इश्क तो सतत प्रवाहमान वह दरिया है जिसका कोई ओर छोर नहीं. अचानक टूटती हुई तन्द्रा में लगा कोई कुछ कह रहा है. देखा तो दीक्षित जी गुनगुना रहे थे...ऐसा जाम दे कि मुझे खुमार आ जाए.ऐसा जाम दे कि मुझे खुमार आ जाए.मैं यार की मस्त आंखों का आशिक हूं.मैं यार की मस्त आंखों का आशिक हूं.दे दे ऐसा जाम के मुझे खुमार आ जाए.तेरी आंखें जिनसे बाग-ए-खुतन में रौनक है.तेरा चेहरा जिससे चमन के गुलाब में रौनक है.फूल सा चेहरा जिससे पत्ता पत्ता महकता है, यार का वतन लालजार है.ऐसी मोहब्बत को सलाम करने का जी चाहता है. है ना?

1 comment:

  1. Sir aapki ye post padhkar mujhe ek sher yaad aa raha hai, pesh kar raha hoon
    "Mohabbat ke liye kuchh khas dil makhsoos hote hain, Ye wo nagma hai jo her saaj par gaya nahi jaata."
    Aaj ki ye yuv peedhi ishque ka matlab kya janegi. Yeh to bas timepass hai sahab. Ishqu ka talluk to khuda se hota hai. yeh to bas vasna hai.

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