Thursday, February 11, 2010

उफ ! ये नफरत...

असंतोष या विचारों में फर्क होना एक अलग चीज है लेकिन यह फर्क राह भटक कर अपराध की अंधेरी सुरंग की तरफ बढऩे लगे तो उसे किसी भी हालत में सही करार नहीं दिया जा सकता. चर्चित रुचिका केस के एक्यूस्ड एसपीएस राठौड़ को चाकू मारे जाने का मामला ऐसी ही कुछ बयान करने लगा है. राठौड़ को चाकू मारने वाला उत्सव शर्मा कोई जनरल स्टूडेंट या यूथ नहीं है. वो बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के फैकल्टी ऑफ फाइन आट्र्स का गोल्ड मेडलिस्ट बंदा है. घटनाक्रम के सिलसिले में फिलहाल जो बातें सामने आ रही हैं उससे पता चलता है कि सिस्टम के खिलाफ उसके मन में एक असंतोष था. इन सबके चलते वह थोड़ा उग्र या कह सकते हैं कि विद्रोही हो गया था. उसके सब कॉन्शस में लगातार द्वन्द चलता रहता था. इस कशमकश ने आज उसे एक ऐसे दलदल में पहुंचा दिया जिससे उबर पाना शायद नामुमकिन है.एक टैलेंटेड यूथ के इस अंजाम पर पहुंचने के लिए जिम्मेदार कौन है, यह एक लम्बी बहस का मुद्दा है. लेकिन हम अपने आसपास दिख रहे कई उत्सव शर्माओं का क्या करें जो सोसाइटी से अपने सवालों का जवाब चाहते हैं. क्राइम, करप्शन, सैबोटाज और कॉन्सपरेंसी के चौगुटे से नफरत रखने वाले ये उत्सव कोर्ट के लचीले रवैये से भी खासे नाराज हैं. इनकी नाराजगी स्वाभाविक है. तारीखों में उलझी कोर्ट और वहां से बरी होकर निकलते आरोपी. आरोपियों की विद्रुप मुस्कान उनके विद्रोही मन की आग को हवा देने का काम करती है. कहने का मतलब अपराध की कोख एक और अपराध को जन्म देने का काम करती है. तो क्या ऐसा नहीं हो सकता कि हम अपराध के इस स्रोत का मुंह ही बंद कर दें. इन्हें पनपाने वाले तमाम कारणों का ही खात्मा कर दें. अपने कानून पर भरोसा करें. बगावत की टेंडेंसी वाले लोगों को समझायें कि भइया धीरज रखो. हम जानते हैं कि यह सब इतना आसान नहीं है. लेकिन हमें यह भी यकीन है कि इस दिशा में की गयी एक पहल कई उत्सव शर्माओं को राह भटकने से रोकेगी.

1 comment:

  1. is article me kafi gahara massege hai. ye thik hai ki apne samne kuchh galat hota dekho to bardash nahi hota. lekin agar is tarah se ugra ho kar aur apna apa kho kar ham dusro par prahar karenge to phir ek din samaj me hinsa badi jagah bana legi.

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