Wednesday, June 16, 2010


हमें न चाहो...

हमें न चाहो की हम बदनसीब हैं लोगों
हमारे चाहने वाले ज़िया नहीं करते
ये उनसे पूछो जो हमसे करीब हैं लोगों
खुशी के दिन कभी हमसे वफा नहीं करते
वो क्या डरेगा राहों के पत्थर की नोक से
तलवे खुजा रहा हो जो खंज़र की नोक से
बच्चा कदम ज़मीन पर रखते ही बेझिज्हक
कहता है कि मां की गोद में अब तक मैं कैद था
गोदी में लेके, ढांक के आंचल से आज तक
जो खून उसने मुझको पिलाया सफेद था
रहमत का तलबगार तो होना ही पड़ेगा
दामन के हर दाग़ को धोना ही पड़ेगा
हंसता हुआ दुनिया में तो आया कोई नहीं
पैदा जो हुआ है उसे रोना ही पड़ेगा
हमारे शहर की तारीख सिर्फ अंदाजा
किसी को यह नहीं मालूम कब हुआ आबाद
ये सारे मुल्क के शाहों का एक शहजादा
यहां जो धर्म भी आया सदा रहा आबाद
हमारे शहर की तहजीब भी पुरानी है
यहां पर सिर्फ वफा की हवाएं चलती हैं
ये रोशनी की जमीं प्यार की निशानी
हर एक दीप के पीछे दुआएं चलती है
- डॉ. नाजिम जाफरी

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