Wednesday, June 30, 2010


एक जू-ए-दर्द...

एक जू-ए-दर्द दिल से जिगर तक रवा है आज
पिघला हुआ रगो में इक आतिश-फिशा है आज
लब सिल दिया है ता ना शिकायत करे कोई
लेकिन हर एक जख्म के मुंह में जबां है आज
तारीखियों ने घेर लिया है हयात को
लेकिन किसी का रू-ए-हासी दरमियां है आज
जीने का वक्त है यही मरने का वक्त है
दिल अपनी जिंदगी से बहुत शादामान है आज
हो जाता हूं शहीद हर अहल-ए-वफा के साथ
हर दास्तां-ए-इश्क मेरी दास्तां है आज
आये हैं किस निसहात से हम कत्लगाह में
जख्मों से दिल है चूर नजर गुल-फिशा है आज
जिंदानियो ने तोड़ दिया जुल्म का गुरूर
वो दब-दबा वो रौब-ए-हूकूमत कहां है आज

-अली सरदार जाफरी

1 comment:

  1. अली सरदार जाफरी की रचना पढ़वाने का आभार.

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