Tuesday, June 22, 2010


इश्क की इंतेहा नहीं

इश्क की वाकई कोई इंतेहा नहीं होती. एक सच्चे आशिक को फनाइयत की कभी कोई फिक्र नहीं होती. और न ही होती है बका की चाहत. उसका जुड़ाव सिर्फ रूह से होता है. जिस्म उसके लिए कोई मायने नहीं रखता. अपने माशूक में वह कुल-ए-कायनात का तसव्वुर करता है. यह सब आसमानी मुहब्बत के लक्षण हैं. ऐसी ही आसमानी मुहब्बत के शायर हैं अली सरदार जाफरी साहब. वो किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं. उनकी शायरी के एक एक लफ्ज में इश्क और उसकी तासीर झलकती है. मेरे कुछ कहने से बेहतर है कि आप खुद ही इसे पढ़ लें...

तू मुझे इतना प्यार से मत देख
तू मुझे इतने प्यार से मत देख
तेरी पलकों के नर्म साये में
डूबती चांदनी सी लगती है
और मुझे इतनी दूर जाना है
रेत है गर्म, पांवों के छाले
यूं दहकते हैं जैसे अंगारे
प्यार की ये नजर रहे ना रहे
कौन दश्त-ए-वफा में जलता है
तेरे दिल को खबर रहे ना रहे
तू मुझे इतना प्यार से मत देख

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